“नेतृत्व की राह,” रविवारीय” में आज पढ़िए : बालिकाओं को मिल रहा प्रशासनिक अनुभव
एक दिन की बादशाहत
मुग़ल बादशाह बाबर के पुत्र हुमायूँ ने दिल्ली की गद्दी संभाली थी, किंतु अफ़ग़ान शासक शेरशाह सूरी से उसका संघर्ष लगातार जारी

रहा। 1539 ईस्वी में बिहार के चौसा (वर्तमान बक्सर ज़िले के निकट) में हुए युद्ध में हुमायूँ की सेना पराजित हुई और वह स्वयं जान बचाकर भाग निकला। भागते-भागते जब वह गंगा नदी तक पहुँचा, तो उसके पास कोई उपाय न था। दुश्मन की सेना पास आ चुकी थी। अपनी जान बचाने के लिए उसने घोड़े सहित गंगा नदी में छलाँग लगा दी। मगर गंगा की तेज़ धारा में वह डूबने लगा। तभी एक भिश्ती, निज़ाम, ने अपनी जान जोखिम में डालकर उसे बचाया। हुमायूँ ने कृतज्ञता स्वरूप उसे वचन दिया कि यदि वह पुनः अपनी सल्तनत हासिल करता है, तो निज़ाम को एक दिन के लिए बादशाह बनाएगा। वर्षों बाद जब हुमायूँ ने गद्दी वापस पाई, तो उसने अपना वचन निभाया। इतिहास में दर्ज है कि बाबर के पुत्र हुमायूँ ने निज़ाम भिश्ती को एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह घोषित किया। पूरे सम्मान के साथ उसे गद्दी पर बैठाया गया और निज़ाम ने उस दिन के प्रतीक स्वरूप चमड़े का सिक्का जारी किया।
आज उत्तर प्रदेश सरकार की मिशन शक्ति जैसी पहलें उसी 16वीं शताब्दी ऐतिहासिक प्रसंग की याद दिलाती हैं। फर्क बस इतना है कि अब “एक दिन की बादशाहत” बालिकाओं को दी जा रही है, ताकि वे भविष्य में सशक्त नेतृत्व की भूमिका निभा सकें।
मिशन शक्ति के अंतर्गत महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएँ लागू की गई हैं। इन्हीं में से एक अनोखी पहल यह है कि विद्यालयों में पढ़ने वाली बालिकाओं को एक दिन के लिए प्रशासन के उच्च पदों पर बैठने का अवसर दिया जाता है—कभी उप-ज़िलाधिकारी (एसडीएम) की कुर्सी पर, तो कभी पुलिस पदाधिकारी की जगह। यद्यपि उन्हें नीतिगत या संवैधानिक निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता, फिर भी वे सामाजिक और शैक्षिक मुद्दों पर अपनी राय मजबूती से रखती हैं और छोटे-छोटे निर्णय अवश्य लेती हैं। प्रशासनिक अमला उनके साथ पूरी तरह से सहयोग करता है ताकि यह प्रक्रिया सहज और प्रभावी बन सके।
यह प्रयोग केवल प्रतीकात्मक नहीं है। यह बालिकाओं के आत्मविश्वास को गढ़ने, उनमें नेतृत्व क्षमता विकसित करने और समाज को यह संदेश देने का प्रयास है कि भविष्य की बागडोर महिलाएँ भी दक्षता से सँभाल सकती हैं। आज भले ही यह अवसर केवल एक दिन का हो, किंतु कल यही अनुभव उनके जीवन की दिशा बदल सकता है।
केंद्र सरकार भी इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए अपने आउटरीच अभियान के तहत वर्षों से अधिकारियों को विद्यालयों में भेज रही है। वहाँ वे बच्चों से संवाद करते हैं, उन्हें शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली से परिचित कराते हैं और यह अहसास दिलाते हैं कि वे भी भविष्य में बदलाव के वाहक बन सकते हैं।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति जनता होती है। यदि इस शक्ति को बचपन से ही जागरूक, उत्तरदायी और संवेदनशील बना दिया जाए, तो भविष्य निश्चित ही अधिक उज्ज्वल और मज़बूत होगा। लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत बनाए रखने के लिए केवल चुनाव पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि ऐसी पहलों की आवश्यकता है जो समाज की आधी आबादी—महिलाओं—और आने वाली पीढ़ियों को नेतृत्व और निर्णय की प्रक्रिया में शामिल करें। यही प्रयास लोकतंत्र को जीवंत और स्थायी बनाए रखते हैं।
यही कारण है कि उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन शक्ति अभियान अन्य राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए। यह पहल केवल प्रतीक नहीं, बल्कि संभावनाओं का द्वार है। आज का छोटा-सा अवसर कल की बड़ी उपलब्धि में बदल सकता है। और शायद यही लोकतंत्र की असली ताक़त है—हर नागरिक को नेतृत्व और भागीदारी का अवसर देना। इसी संदर्भ में मुझे 16वीं शताब्दी की एक दिन के बादशाह की ऐतिहासिक घटना का उल्लेख करना उचित लगता है।
मनीष वर्मा “मनु”
