डॉ. प्रियंका सौरभ का संघर्ष: मौन में लिखी गई कहानी
(अब तक दस पुस्तकों का लेखन, स्नातक की पढ़ाई के दौरान विवाह, सीमित संसाधन, गाँव की पृष्ठभूमि और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच प्रियंका ने हार नहीं मानी। माँ बनीं, गृहिणी बनीं, लेकिन कलम नहीं छोड़ी। पढ़ाई जारी रखी — डबल एम.ए., एम.फिल और अब पीएच.डी। पाँचवीं बार सरकारी नौकरी प्राप्त की और हरियाणा शिक्षा विभाग में प्रवक्ता बनीं। घर, बच्चों, स्कूल और समाज के बीच लेखन को जिया, रातों की नींद और सामाजिक चुप्पियों को पन्नों पर उतारा। उनका संघर्ष शोर नहीं करता, लेकिन हर शब्द में एक संघर्षशील स्त्री की अनकही शक्ति बोलती है।)
हर युग में कुछ आवाज़ें होती हैं जो भाषण नहीं देतीं, आंदोलन नहीं चलातीं, बस चुपचाप लिखती हैं — और फिर भी इतिहास को मोड़ देती हैं। प्रियंका सौरभ ऐसी ही एक सृजनशील शक्ति हैं, जिन्होंने न पगड़ी पहनी, न पताका उठाई — लेकिन उनकी कलम ने वो कर दिखाया, जो कई क्रांतियाँ भी न कर सकीं।
हरियाणा के हिसार ज़िले के आर्य नगर गाँव से शुरू हुआ प्रियंका का सफर आज वैश्विक मंच तक गूंज रहा है। स्नातक के समय ही विवाह हो गया, पर जीवन की रफ्तार रुकी नहीं। राजनीति विज्ञान में डबल एम.ए. और एम.फिल करने के बाद वे शिक्षा विभाग में प्रवक्ता बनीं। पाँचवीं सरकारी नौकरी, और अब पीएच.डी की शोध यात्रा — उनका जीवन लेखन और शिक्षा का संगम बन गया।
2020 की वैश्विक महामारी जहाँ ठहराव बनी, प्रियंका के लिए वह ‘समय की रेत पर’ लिखने का समय बन गई। इसी शीर्षक से उनका निबंध संग्रह सामने आया, जिसमें उन्होंने समाज, मन, और मनुष्यता के बीच के झंझावातों को दर्ज किया।
डॉ. प्रियंका सौरभ का साहित्यिक संसार विषय-विविधता और संवेदनात्मक गहराई का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है। उनके काव्य संग्रहों में “दीमक लगे गुलाब” खोखले होते रिश्तों और संवेदनहीन समाज पर तीखा प्रहार करता है, जबकि “चूल्हे से चाँद तक” स्त्री-अनुभवों, सीमाओं और आकांक्षाओं की रचनात्मक पड़ताल करता है। “मौन की मुस्कान” चुप्पियों में छिपी व्यथाओं और मुस्कानों के भीतर की चीख को सजीवता से उभारता है। बच्चों के लिए लिखे गए बाल काव्य संग्रह “परियों से संवाद” में कल्पनाओं की उड़ान है, तो “बच्चों की दुनिया” बालमन की मासूम भावनाओं, प्रकृति-प्रेम और नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत है। उनके हिन्दी निबंध संग्रह “समय की रेत पर” में सामाजिक बदलाव, स्त्री-विमर्श और समकालीन मुद्दों पर विचारोत्तेजक लेखन मिलता है, जबकि “निर्भयें” साहस, संघर्ष और आत्मसम्मान से जुड़ी विविध स्त्री कथाओं का सशक्त दस्तावेज है। अंग्रेज़ी में रचित निबंध संग्रह “Fearless” भारतीय स्त्री-जीवन, ग्रामीण संदर्भ और आंतरिक शक्ति की प्रभावशाली व्याख्या प्रस्तुत करता है। अंत में, लघुकथा संग्रह “आँचल की चुप्पी” स्त्री-मन के अनकहे संवादों और सूक्ष्म विद्रोहों को मार्मिक रूप से सामने लाता है। उनका नया काव्य/निबंधनुमा संग्रह “खिड़की से झांकती ज़िंदगी” रोज़मर्रा के अनुभवों, जीवन की छोटी-बड़ी हलचलों और मानवीय संवेदनाओं को खिड़की की प्रतीकात्मक दृष्टि से देखने का सुंदर प्रयास प्रस्तुत करता है।
प्रियंका सौरभ की नौ पुस्तकें उनके साहित्यिक विस्तार और सरोकारों का प्रमाण हैं — दीमक लगे गुलाब, चूल्हे से चाँद तक, मौन की मुस्कान (काव्य संग्रह), परियों से संवाद, बच्चों की दुनिया (बाल साहित्य), समय की रेत पर, निर्भयें (हिंदी निबंध संग्रह), Fearless (अंग्रेज़ी निबंध संग्रह) और आंचल की चुप्पी (लघुकथा संग्रह)। इनमें हर किताब किसी एक अनकही संवेदना या हाशिए पर छूटे हुए समाज की वाणी बनती है।
उनका लेखन कोई घोषणापत्र नहीं, आत्मा का जल है। वे उन विषयों को उठाती हैं जिनसे समाज अक्सर आँखें चुराता है — दिव्यांग बच्चों की पीड़ा, बुज़ुर्गों की उपेक्षा, शिक्षकों का मानसिक बोझ, स्त्रियों की चुप्पियाँ। वह स्त्री विमर्श को नारे में नहीं, संवेदना में ढालती हैं। उनकी कविताएं और लघुकथाएं पाठकों को झकझोरती नहीं, बल्कि सोच की ज़मीन को उपजाऊ बनाती हैं।
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📦 संघर्ष से सिद्धि तक (एक प्रेरक झलक)
📍 शुरुआत: स्नातक की छात्रा के रूप में विवाह
📍 पढ़ाई: राजनीति विज्ञान में डबल M.A. और M.Phil
📍 रोजगार: पाँचवीं सरकारी नौकरी — प्रवक्ता, हरियाणा शिक्षा विभाग
📍 वर्तमान: पीएच.डी शोधार्थी, लेखिका, स्तंभकार
📍 साहित्यिक योगदान: 9 पुस्तकें, 10,000+ लेख, वैश्विक मंचों पर लेखन
📍 सम्मान: IPS मानव पुरस्कार, नारी रत्न, सुपर वुमन अवार्ड, अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरेट्स
> “संघर्ष केवल बाधा नहीं, सीढ़ी भी हो सकता है — प्रियंका की यात्रा इसका प्रमाण है।” उनका साहित्य कोई ब्रांड नहीं, विचार का बीज है। सम्मान और पुरस्कार उनके पीछे आए।
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“मैंने अपने हिस्से का आकाश नहीं माँगा,
मैंने बस इतना चाहा —
कि जो ज़मीन मेरी सोच को उगने दे,
वो बंजर न हो।”
— प्रियंका सौरभ
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जब दुनिया शोर में खो रही है, प्रियंका मौन में रच रही हैं। जब साहित्य बाजार में बिक रहा है, प्रियंका विचारों के खेत में बुन रही हैं। जब लेखक ट्रेंड बनने की होड़ में हैं, प्रियंका चेतना की दिशा तय कर रही हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया है कि साहित्य में आज भी वह ताक़त है — जो बग़ैर भाषण के, सिर्फ़ सच्चे शब्दों से दुनिया बदल सकता है।
यह लेख उन सभी के लिए है जो मानते हैं कि लेखन केवल छपना नहीं होता — वह समाज की नसों में उतरकर कुछ नया रच सकता है। प्रियंका सौरभ उसी मौन क्रांति की प्रतीक हैं — धीरे, लेकिन गहराई से असर करने वाली।
प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
