सम्पादकीय

एक अनकहा रिश्ता, “रविवारीय” में आज पढ़िए- हर रोज़ की उस साइकिल वाली बाई के नाम

एक ऐसा रिश्ता, जो कहीं , कभी और किसी से कहा नहीं गया, समझाया नहीं गया, पर हर रोज़ जीया गया।
जी हाँ, कुछ ऐसा ही रिश्ता था हमारा उस “साइकिल वाली बाई” के साथ — यही नाम तो रखा था हमने उसका। असल में नाम तो

मनीश वर्मा, लेखक और विचारक

कभी पूछा ही नहीं, ज़रूरत भी नहीं पड़ी। फिर भी, एक अनकहे परिचय की डोर हम दोनों के बीच बंध गई थी, जो हर दिन के साथ थोड़ी और मजबूत होती जाती थी।
हमारे कार्यालय जाने का समय और शायद उसके काम पर निकलने का समय लगभग एक ही होता था। दो कदम आगे या पीछे, पर लगभग रोज़ हमारी मुलाक़ात हो ही जाती थी — सड़क किनारे, ट्रैफिक सिग्नल पर, या बस यूँ ही चलते-चलते। कभी वह मेरी नज़रों के सामने से गुज़रती और कभी मैं उसके सामने से निकल जाता।
पता नहीं, जैसे मैंने उसे नोटिस किया था, क्या उसने भी कभी मुझे देखा था ? शायद नहीं, शायद हाँ — कौन जाने। न कोई बात, न कोई अभिवादन। कोई रिश्ता नहीं था हमारा उसके साथ, पर रोज़-रोज़ आते-जाते एक अनाम-सा संबंध ज़रूर हमारे भीतर जन्म लेने लगा था। अगर किसी दिन वह नहीं दिखती, तो लगता जैसे शहर की चहल-पहल में कुछ अधूरा रह गया हो। जैसे किसी जाने-पहचाने चेहरे की अनुपस्थिति ने दिन को बेरंग कर दिया हो।
उसकी उम्र कोई पैंतालीस-पचास के आसपास रही होगी। न बहुत लंबी, न बहुत छोटी — एक औसत कद-काठी की महिला थी वह। चेहरा थोड़ा साँवला, पर आत्मविश्वास से भरा। पहनावे में सादगी थी, पर चाल में दृढ़ता। उसे कभी इधर-उधर देखते नहीं देखा — न कोई उत्सुकता, न कोई झिझक। ऐसा लगता था मानो वह एक मशीन की तरह यंत्रवत अपने तय रास्ते पर बढ़ती चली जा रही हो। न धूप की परवाह, न ट्रैफिक की चिंता। आँखें सीधी सड़क पर, और पैर पैडल पर मजबूती से टिके हुए।
कभी-कभी सोचता था — कहाँ जाती है वो ? क्या करती है? कौन लोग हैं उसके अपने? पर फिर खुद ही सवालों को धुँधला कर देता। शायद जान लेना उस अजनबीपन की मिठास को छीन लेता, जो इस रिश्ते की सबसे ख़ास बात थी।
भीड़-भाड़ के उस घंटे में, जब चारों ओर लोग ही लोग होते, कितनी अजीब बात है ना कि किसी एक की उपस्थिति जो इतनी साफ़ महसूस होती है।
कभी सोंचता हूँ , यह क्या था ?
यह रिश्ता क्या था?
शायद कुछ भी नहीं,
शायद बहुत कुछ।
रोज़ की एक आदत,
या शायद एक मौन संवाद,
जो न कभी कहा गया,
न कभी सुना गया,
बस — हर दिन महसूस किया गया।

🖋️ मनीश वर्मा ‘ मनु ‘

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