सम्पादकीय

नकवी साहब के नए शौक़ पर सलाह, दुबई में हीं खरीद ले नई ट्रॉफी, जीतने की क्षमता उनके खिलाड़ियों में नहीं

मधुप मणि “पिक्कू”

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) को उसके चेयरमैन ने पाकिस्तान कॉमेडी बोर्ड बना दिया है। इस कॉमेडी बोर्ड के अध्यक्ष मोहसिन नकवी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। लेकिन यह सुर्खियां उनकी नीतियों, फैसलों या सुधारों के कारण नहीं, बल्कि एक ट्रॉफी के कारण हैं। हाल ही में जब नकवी ने चैंपियनशिप ट्रॉफी को अपने साथ ले जाने का “विशेषाधिकार” दिखाया, तो क्रिकेट प्रेमियों से लेकर पूर्व खिलाड़ियों तक सभी ने इसे हास्यास्पद करार दिया। कुछ खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रशंसकों ने इसे “ट्रॉफी चोरी” का नाम भी दे दिया।

खेलों की दुनिया में ट्रॉफी किसी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं, बल्कि सामूहिक मेहनत और संघर्ष का प्रतीक होती है। टीम के खिलाड़ी, सपोर्ट स्टाफ और लाखों प्रशंसक मिलकर उस ट्रॉफी की कहानी लिखते हैं। ऐसे में किसी प्रशासक द्वारा उसे “निजी शोपीस” की तरह पेश करना, खेल भावना के साथ-साथ संस्थागत गरिमा पर भी सवाल खड़े करता है।

इस घटना ने पीसीबी की कार्यप्रणाली पर गहरा व्यंग्य भी कर दिया है। आलोचकों का कहना है कि नकवी के इस कदम ने यह दिखा दिया कि पाकिस्तान क्रिकेट के लिए सबसे बड़ा संकट मैदान पर प्रदर्शन से ज़्यादा, बोर्ड के भीतर की मानसिकता है। जब नेतृत्व ही ट्रॉफी को पब्लिसिटी स्टंट बनाने लगे, तो खिलाड़ियों और प्रशंसकों के मन में उपेक्षा का भाव आना स्वाभाविक है।

दरअसल, क्रिकेट का इतिहास गवाह है कि ट्रॉफियां सिर्फ़ जीत की निशानी नहीं होतीं, बल्कि वे पूरे देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्हें ले जाने का “हक़” किसी अध्यक्ष का नहीं, बल्कि उन खिलाड़ियों का होता है, जिन्होंने पसीना बहाकर उसे हासिल किया।

नकवी सिर्फ ट्रॉफी लेकर नहीं गए बल्कि अपने देश के संस्कार को दिखा दिया। ये बता दिया कि “हम नहीं सुधरेंगे।” सबसे हास्यास्पद यह है कि वे हारी हुई टीम के बोर्ड के नेतृत्वकर्ता हैं और उन्होंने ट्रॉफी ले जाकर खुद की हार की शर्मिंदगी को बेशर्मी से पर्दा डालने की कोशिश की है।

आज जरूरत इस बात की है कि पीसीबी आत्ममंथन करे और समझे कि खेल प्रशासन दिखावे का मंच नहीं, बल्कि खिलाड़ियों और खेल संस्कृति को सशक्त करने का माध्यम है। ट्रॉफी ले जाने की “खुशफहमी” से मिली यह आलोचना, पाकिस्तान क्रिकेट के लिए एक सबक साबित हो सकती है, बशर्ते बोर्ड उसे समझने की ईमानदार कोशिश करे।

नकवी के इस कदम का विरोध न सिर्फ भारत या अन्य देशों में हो रहा है बल्कि खुद पाकिस्तान में भी उन्हें लोग आड़े हाथ ले रहे हैं। उन्हें यह नहीं पता हैं ट्रॉफी जीती जाती है, चोरी नहीं की जाती है। अगर इतना हीं शौक ट्रॉफी का है तो दुबई में हीं किसी दुकान से खरीद लेते और अपने गेस्ट रूम में आज कर लेते। इतना विवाद भी नहीं होता।