“शराबबंदी” पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया, सांसद सुधाकर सिंह का बड़ा आरोप
शराबबंदी और वसूली से राज्य में पुलिस अधिकारियों का सबसे ज्यादा भूमि पूजन
जबरन वसूली और अपराध संरक्षण देती है बिहार पुलिस
अपने कई अनुभवों को साझा किया सांसद ने
06 जुलाई 2025, पटना। बिहार के प्रतिष्ठित सांसद श्री सुधाकर सिंह ने आज राज्य की पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए इसे “लॉ एंड ऑर्डर के बजाय लूट एंड ऑर्डर की मशीनरी” बताया। उन्होंने कहा कि बिहार पुलिस मानसिक रूप से साम्प्रदायिक, भ्रष्ट और गरीब-विरोधी चरित्र की प्रतीक बन गई है, जो न्याय नहीं, केवल लेन-देन की भाषा समझती है।
सांसद सिंह ने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर पुलिस तंत्र की विफलताओं को रेखांकित किया।
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि मरांची थाना, बाढ़ अनुमंडल (पटना) में वर्ष 2022–23 की एक घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक महिला, उसका पति और उनकी एकमात्र पुत्री, संपत्ति विवाद में रिश्तेदारों की बर्बरता के शिकार हुए। उनकी दुकान (15×5 फीट) जबरन छीन ली गई, मारपीट की गई और जान से मारने की धमकी दी गई।
थाना जाने पर उनसे कहा गया कि “पहले पैसा दो, तभी केस दर्ज होगा” क्योंकि आरोपी पहले से घूस दे चुके थे। हालांकि पटना रूरल एसपी के हस्तक्षेप पर केस दर्ज हुआ, लेकिन गिरफ़्तारी तब तक नहीं की गई जब तक कि आरोपी जमानत न ले लें। पीड़ित परिवार को न्याय के लिए लगभग ₹5 लाख खर्च करने पड़े, और आज तक उनकी दुकान कब्जे से मुक्त नहीं हो सकी है।
सांसद ने आरोप लगाया कि पुलिस “दोनों पक्षों से घूस लेकर दो तरफा मुकदमा” दर्ज करती है, और अपराधियों को नियंत्रित करने की जगह उन्हें संरक्षण देती है।
श्री सिंह ने बाकरगंज, पटना के पूजा सामग्री विक्रेताओं के हवाले से बताया कि “भूमिपूजन सबसे अधिक पुलिस अफसरों का हो रहा है”, जिसमें जबरन चंदा वसूली आम बात हो गई है।
उन्होंने शराबबंदी को उन्होंने “पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया” करार दिया। उन्होंने कहा कि इस नीति की आड़ में पुलिस ने अपनी जेबें भरी हैं, जबकि जमीन पर अवैध शराब का कारोबार निर्बाध जारी है।
उन्होंने कहा कि “बिहार में पुलिसिंग नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। यहां न्याय व्यवस्था दम तोड़ चुकी है।” आम नागरिकों को अत्याचार सह लेना पुलिस थानों में जाने से बेहतर विकल्प लगने लगा है।
सांसद सुधाकर सिंह ने मांग की है कि बिहार सरकार इस पुलिस संरचना की पुनर्रचना करे और जनसरोकार की वास्तविक व्यवस्था सुनिश्चित करे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि व्यवस्था नहीं सुधरी तो जनता का आक्रोश सड़कों पर फूटेगा और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।