सम्पादकीय

“हरियाली तीज: झूले मन के, साज ऋतु के”

डॉ सत्यवान सौरभ

झूले डोलें पीपल डाली,

डाॅ.सत्यवान सौरभ

हरियाली ने चुनर संभाली।
मेंहदी रचें हथेली प्यारी,
सावन आई सखियों वाली।

गीतों में मधुरिम तानें,
बोलें दिल की अनकही बातें।
नयनों में प्रिय की छाया,
मन बोले– अब तो वो आए।

श्रृंगार नहीं केवल बाहरी,
मन का प्रेम बसे हर साज में।
शिव-पार्वती की उस गाथा में,
नारी बसी है हर आवाज़ में।

बदले हैं रीत-रिवाज़ बहुत,
पर तीज की बात पुरानी है।
आधुनिक छांव हो या धूप,
हरियाली तीज सुहानी है।

सजते अब इंस्टा स्टोरी में,
पर भाव वही हैं छोरी में।
झूले हों चाहे पर्दे पर,
मन अब भी झूमे डाले पर।

 

डॉo सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

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