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लोकतंत्र और आम लोगों की जद्दोजहद

राजनीति मतलब नीति के साथ शासन करना। आम आदमी के वश में कहां है शासन करना। दाल रोटी की जद्दोजहद से ऊपर उठे तब तो बाकी के बारे में सोचें। रोज कमाकर खाने भर के लिए भी पैसे

मनीष वर्मा,लेखक और विचारक

नहीं जूटा पाते हैं। उनके लिए कहां चुनाव और चुनावी प्रक्रिया।वो तो मतदान के दिन बस अपनी संवैधानिक अधिकार का निर्वहन भर करता है। अधिकांश लोगों को तो शायद मालूम भी नहीं कि संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन भला क्या बला है। वो कहां जानते हैं दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर चल रहे बहसबाजी को। दिनभर की मेहनत मजदूरी के बाद जब थक कर चूर हो कर घर आते हैं तो उनके लिए मनोरंजन के मायने बिल्कुल बदले बदले से होते हैं। कहां वो ड्राइंग रूम में बैठकर राजनीति पर चर्चा करते हैं। उनके मुताबिक राजनीति और राजनेता बस उतना ही मायने रखते हैं कि उन्हें दो जून की रोटी मयस्सर हो सके। उनके लिए तो जीवन – मरण, बीमारी – सीमारी सभी भगवान् की देन हैं। परिवार में जन्म होने पर उनकी खुशी इस बात को लेकर होती है कि चलो कमाने खाने वाला दो हाथ और बढ़ गया। मृत्यु होने पर उनकी जद्दोजहद कल के खाने को लेकर होती है। कहां शोक मना पाते हैं बेचारे। परंपराएं और रीति रिवाज – जब रोटी दाल से उपर उठें तब तो सोचें। क्या चुनाव, क्या चुनावी प्रचार और क्या मतदान का दिन। उनके लिए सब दिन एक बराबर। उन्हें तो चुनाव के बारे में पता भी कहां चल पाता है। वो तो बेचारे उम्मीदवार को भी नहीं जानते हैं। उम्मीदवारों के प्रतिनिधि आते हैं, उन्हें सब्जबाग दिखाकर वोट ले जाते हैं।
मतदान के दिन छुट्टियां रहती हैं, पर वो तो बेचारे यह सोचकर चिंतित रहते हैं कि आज के भोजन का जुगाड़ कैसे हो। जिस किसी ने उनके उस दिन के भोजन का बढ़िया जुगाड़ कर दिया, हथेली पर चंद सिक्के रख दिए, बस उनकी सारी संवैधानिक जिम्मेवारियां उनके साथ हो गई। जिंदगी की जद्दोजहद में ये बेचारे लोकतंत्र के महायज्ञ से बिल्कुल अनजान और बेखबर। आनेवाले दिनों में जब हम मतदान की प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन की बात करते हैं, तब शायद हम इस बात को भूल जाते हैं कि एक बड़ा तबका तकनीक की दुनिया से आज भी बहुत दूर है। देश की आजादी से लेकर आज तक हमने एक लंबा सफ़र तय किया है, इस बात में कोई शक नहीं। पर, हम अभी तक अपनी शत् प्रतिशत आबादी से मतदान नहीं करवा पाए हैं। सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद हमारे मतदान का प्रतिशत वो नहीं है जो होना चाहिए। लोकतंत्र के मजबूत और सफल होने के लिए यह एक बहुत बड़ी ज़रूरत है कि देश का आखिरी व्यक्ति जो देश के अंतिम छोर पर रहता है मतदान की प्रक्रिया में अपना सार्थक योगदान दे। लोकतंत्र एक बड़ी ही खूबसूरत चीज है। एक खुशनुमा अहसास है।हमें इस बात को समझना होगा। उनसे जाकर पूंछे जहां लोकतंत्र है नहीं या दम तोड़ चुका है।
✒️ मनीश वर्मा’मनु’