क्या सिर्फ एक सीट न्यायसंगत है कायस्थों के लिए ? कायस्थ समुदाय का लगातार बढ़ रहा है विरोध
17 अक्टूबर 2025, पटना। बिहार विधानसभा चुनावों कायस्थ जाति को अपने सबसे प्रिय दल से मिली उपेक्षा के बाद समाज में विरोध का बिगुल बज गया है। और राज्य में मात्र एक सीट मिलने से नाराज इस समुदाय ने शायद पहली बार बीजेपी के विरोध में मोर्चा खोल दिया है। बीजेपी के कोई प्रत्याशी हों किसी जाति से हों सभी के लिए बीजेपी के आरम्भ काल से हीं लगातार अपना शत प्रतिशत वोट देने वाली कायस्थ जाति इस बार आर पार के मूड में है।
आपको बताते चले कि जातीय गुटबंदी के बीच कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में इस बार कुछ ऐसा हुआ, जो पहले कभी नहीं देखा गया। कायस्थ समाज, जो इस सीट पर हमेशा दमदार दावेदारी रखता था, इस बार टिकट से वंचित रह गया। इसके पीछे की कहानी इतनी रोचक है कि हर कोई हैरान है।
सूत्रों की मानें तो जब कुम्हरार सीट के लिए उम्मीदवार चुनने की बात आई, तो तीन कायस्थ नेताओं—ऋतुराज सिन्हा, संजय मयूख और रणबीर नंदन—के नामों पर चर्चा हुई। लेकिन हैरानी की बात ये रही कि बैठक में मौजूद कायस्थ समाज के बड़े नेता, सांसद रविशंकर प्रसाद और दीपक प्रकाश, पूरी तरह चुप रहे। दूसरी ओर, अन्य समुदायों के नेताओं ने अपनी पसंद के उम्मीदवारों के लिए जोर-शोर से पैरवी की।
जब कायस्थ नेता खामोश रहे, तो संगठन मंत्री भीखूभाई दालसानिया और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने मौके का फायदा उठाया। उन्होंने कायस्थ उम्मीदवार की जगह वैश्य समाज के नेता संजय गुप्ता को कुम्हरार से उम्मीदवार बना दिया। रविशंकर प्रसाद, जो पटना साहिब से सांसद हैं और जिनकी बात का वजन होता है, ने इस फैसले पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
कायस्थ समाज में नाराजगी
अब सवाल ये उठ रहा है कि कायस्थ समाज के लोग रविशंकर प्रसाद से क्या जवाब मांगेंगे ? खासकर जब चित्रगुप्त पूजा का समय आएगा, और लोग पंडालों में उनसे सवाल करेंगे कि आखिर कुम्हरार की सीट उनके रहते हुए कैसे चली गई ? समाज में इस बात को लेकर गुस्सा और निराशा साफ देखी जा सकती है।
कुम्हरार का यह सियासी ड्रामा अभी और गर्म होने वाला है। कायस्थ समाज क्या इस फैसले को चुपचाप स्वीकार कर लेगा या फिर इसका जवाब वोटों के जरिए देगा ? यह देखना दिलचस्प होगा।