सम्पादकीय

शिव की दिव्य अनुभूति ने शिवयोगी बनाया

सनातन धर्म की दिव्यता से जनमानस को रूबरू कराना परम लक्ष्य

मौजूदा समय में सबसे महान और प्राचीन सनातन धर्म को नेस्तनाबूत करने के लिये एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय साजिश परोक्ष- अपरोक्ष रूप से चल रही है। इससे सभी लोग भलीभाँति वाकिफ हैं।
मैं 15-16 साल की उम्र से ही गायत्री उपासना और हवन करना शुरू कर चुका था। देवों के देव “महादेव” की पूजा तो 3-4 साल की आयु से ही कर रहा हूँ।इस आध्यात्मिक समर्पण से नित् नई

विशाल रंजन दफ्तुआर

दैवीय अनुभूतियों का अनुभव करने लगा था।शिवजी के कई चिन्ह और अदभुत अनुभवों से मैं रूबरू होने लगा था।अब शिव पूजा में भी एक अलग दिव्यता का अनुभव करने लगा। मेरा जीवन “शिवमय” होने की ओर बढ़ने लगा।जब मैंने भवन का निर्माण करवाया तो उसका नाम ऊँ नमः शिवाय विला और शिवालय का निर्माण भी शिवजी की इच्छा से ही हुआ।

पिछले साल मुझे सबसे अदभुत अनुभूति हुई जब मेरी दाहिने हथेली में उसी स्थान पर अचानक से “त्रिशूल”🔱 के दिव्य चिन्ह बन गये जहाँ पर शिवजी की नित्य की पूजा में मैं शिवमय होकर शिव त्रिशूल को अपने दाहिने हथेली में धारण करने की दैवीय परिकल्पना करता हूँ। उसी स्थान पर और उसी पोजीशन में एकदम अचानक से त्रिशूल 🔱 के चिन्ह का बन जाना शिवजी के दिव्य अनुभूति का सबसे अदभुत अनुभव है। हाउ कैन पासिवल? यह कैसे संभव है? लेकिन ऐसा हुआ।

इस वर्ष 4 जनवरी को तो एक बार पुनः एक अलग ही अनुभूति हुई। शिवजी से आध्यात्मिक साक्षात्कार के बाद अचानक से मेरी ललाट पर “त्रिपुंड” की निशानी बन गई। यह कैसे संभव हुआ ? हाउ कैन पासिवल ? लेकिन ऐसा हुआ। मैं शिवयोगी बनने की दिशा में चल पड़ा था। शिवजी की दैवीय प्रेरणा थी कि सनातन धर्म के प्रति साजिशन बनाई जा रही गलत धारणाओं के विरुद्ध भी तुम्हें जनजागरण के पथ पर चलना होगा।देवों के देव “महादेव” की दिव्य प्रेरणा से मेरा आध्यात्मिक नाम “शिवयोगी विशाल” हो गया। उनके बिना एक पत्ता नहीं हिलता है और वही मेरे साथ होते चला जा रहा था।

मेरा जीवन और जीने का तरीका भी शिवमय है। मेरी यह सारी उपलब्धियां और अंतर्राष्ट्रीय मिशनों की सफलता भी शिव कृपा से संभव हो रहा है। पिछले साल एक राष्ट्रीय स्तर के दैनिक समाचार पत्र ने मेरी तमाम उपलब्धियों को मेरी कथनानुसार “दैवीय शक्तियों की कृपा” बताया था। उसके बाद मेरी दाहिनी हथेली में त्रिशूल🔱 और इस साल ललाट पर त्रिपुंड की निशानी का बनना और फिर शिवयोगी में परिवर्तित हो जाना, ऐसे अदभुत कायांतरण दैवीय शक्तियों की इच्छा के बिना संभव ही नहीं।

सनातन धर्म की दिव्यता के संदर्भ में ShivYogiVishal@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

विशाल रंजन दफ्तुआर

(आलेख में व्यक्त विचार, वक्तव्य और संदर्भ लेखक के निजी हैं, जिसको पुष्ट या अपुष्ट / सत्यता या असत्यता ये पोर्टल / मीडिया नहीं करती है।)